दो गिलहरी थे मग्न से I
कभी पेड़ पर कभी दीवारों के ऊपर चढ़ते दन से I
कभी खिडकियों से झाका करते
क्या शिक्षक पढ़ाते मन से I
कबी कूद कर जामुन के पेड़ो पर जाते सन से
झकझोरे डाली को ऐसे हो नई योवन से
कभी दौर कर वर्ग में जाते
कभी खाल्ली को उठाते
कभी घुर कर देखा करते क्या बच्चे पढ़ते लगन से
मेरे कॉलेज के प्रांगन में
दो गिलहरी थे मगन से I
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