मेरे चहेते मित्र

Tuesday, December 30, 2014

हसु या रोऊँ


तेरे मांग में लगा सिंदूर देखा
तेरे हाथों में तेरा खून देखा

खुश हूँ आज मैं जो तू खुश है
अब तो तेरे पास सबकुछ है

मैंने कबका तुझे विसार दिया
जिन्दा थी फिर भी तुझे मार दिया

मैं कनहिया तू मेरी मीरा थी
मिलन नहीं हुई इसी की पीड़ा थी

जग को यही बात बताता था
अटूट प्रेम गाथा सुनाता था

मैं झूठा, झूठ को सच बनाता
तेरी बेवफाई में भी,
वफ़ा का मंदिर सजाता

अपना परिहास मैं क्यों उड़ाऊ
तुझे बेवफा मैं क्यूँ बुलाऊँ

तुमने कभी मुझसे मोहब्बत ना की
मेरा खुमार था तुझसे दीवानगी की

तुमने ही इंकार-ए-आगाज़ किया
महफ़िल में मुझे परित्याग किया

दिल-ही-दिल में घुट-घुट कर रोया
ना जाने कितने रातों को भी ना सोया

खुशियों से कर ली थी दुश्मनी
क्योंकि मुझमे तेरी ही थी कमी

हर रोज खुशियों का गाला घोटता
गम के विष में मैं मग्न लोटता

मैं शिव नहीं था जो विष को पी लेता
हां तू शिवानी होगी ,
विष पीकर जीना तेरी आदत पुरानी होगी

तेरी ख़ुशी पर मैं अट्टहास मारूं
या अपने गम की आरती उतारू

क्या करू कुछ समझ आता नहीं
हसु या रोऊँ मुझे कोई बताता नहीं 

Monday, December 29, 2014

मॉल में एक शाम


बहुत बना ली जलेबी
खा-ली, समोसा और कचौरी
कर ली दौरा दौड़ी
अब सांस लेता हूँ मै थोड़ी

सुनाता हूँ मै दिल की बात
हुआ मेरे साथ जो पिछली रात

महानगर की सड़कों पे
अकेला विचरण करता मै
छोटी छोटी मलिन बस्तियों को
अट्टालिकाओं पे धरता मै

लेकर सहर्ष सा स्वभाव
खाया करता था बड़ा पाव
न स्वाद था ना ज्यादा भाव
पर लोगो का था बड़ा चाव

देख कर माहौल चला
सामने वाले मॉल चला
जगमग प्रकाश के बीच
कुछ देशी-विदेशी दुकाने थी
उनमे सस्ती महंगी समाने थी

खरीदारी करते कुछ हसबैंड, बॉयफ्रेंड
उनकी गिर्ल्फ्रिंड और शायद घरवाली
और कुछ एनाउंसमेंट कर रही थी
मॉल के बीच वो इवेंट करने वाली

आ जाओ सब सच्चे बच्चे
खेलें कुछ खेल हम अच्छे

धमा चौकड़ी कर
बच्चों ने उत्पात मचाया
उसे देख मुझे मेरा
 बचपन याद आया

मन ही मन मुस्काते खुद से बातेँ करता
उन बच्चों में खुद को आप देखा करता

सवाल था क्यूँ उदास हु
क्या है मुझमे कमी
तभी एक आवाज आई
एक्सक्यूज मी , एक्सक्यूज मी ,

हाई फ्रीक्वेंसी की मध्यम सुर वाली
ध्वनि पीछा कर रही थी
मेरी तंत्रिका तंत्र से जुड़कर
आँख, कान, पैरों को जकड़ रही थी

अपनी सोच से निकल नयन घुमा रहा था
ध्वनि किधर से आयी उसे ढूंढे जा रहा था

बायें तरफ खड़ी एक सुन्दर स्त्रि
हुस्न से लबरेज़ औ नग्ण्ता से भरी

बार-बार मुझे बुला रही थी
एक्सक्यूज मी एक पिक्चर खीच दो
कह कर आग्रह जता रही थी

अपनी साथी संग वो स्वांग रचाए
अजंता-ऐलोरा  का दृस्य खिचवाये

मै कुंठित निर्लज् फोटो खींचे जा रहा था
खुद की भावनाओं को  पीटे जा रहा था

खुद को पीट थक जाने के बाद
मै थम गया
फोटो खिंच मोबाइल देकर
मेरा गम गया

अब बस बहुत हुआ ये तमाशा
नहीं खाना है मुझको अब बताशा

सिर्फ बनाऊगा अब रसगुल्ला
खाऊंगा रसमलाई
काजूकतली के साथ चोको पाई।


Thursday, October 9, 2014

चाय वाले का प्रयास


सुबह -सुबह  वो जाग कर
कोयले के ढेर में जाते है
उन ढेरों में से छांट कर
जरुरत के टुकड़े लाते है

कल रात की हुई बारिश में
कोयला भी गीला -गीला है
चूल्हे की भींगी राख भी
थोड़ा सख्त और गठीला है

फिर भी चूल्हे को जलाना है
रोजी -रोटी तो कमाना है
चाय के जो दिवाने हैं
उनको तो चाय पिलाना  हैं

कश्मीर सी डूबी बारिश में
कुछ तीली की माचिश में
कैसे चूल्हे को जलाएंगे
जन -धन योजना लाएंगे

गाँधी जी का एक डंडा है
अनुशरण करता वो बंदा है
चूल्हे में जमें सख्त राख को
क्रन्तिकारी सी झकझोरे वो

जो राख नीचे गिर जाएंगे
उनसे गड्ढे भरे जायेंगे
रामरस मिट्टी को लेपकर
चूल्हे को पुनः चमकाएंगे

चूल्हे को चमकाने में
गंदगी फैली जो आस-पास
झाड़ू को हाथ में लेकर वो
शुरू किया  एक साझा प्रयास

इस स्वछता अभियान से
प्यार, व्यवहार सम्मान से
अच्छे ग्राहक भी आएंगे
हम से हीं चाय बनवायेंगे

ये तो मात्र अभिव्यक्ति थी
यात्रा की एक शुक्ति  थी
गीले चूल्हे को जलाने की
सूखे गोयठे की युक्ति थी

चूल्हे में आग सुलगते ही
पड़ोस धुआंधार क्यों होता है
जिंपिंग के दिए खिलौने के
आँखों में जलन क्यों दिखता है

आँच के धधकने  पर
टी-पैन  उसपर चढातें है
चीनी , दूध , पत्ती  के साथ
अदरक - इलाइची  मिलाते है

चाय की मोहक सुगन्ध जब
विदेशी धरा  तक जाएगी
सेंट्रलपार्क से मेडिसन तक
ग्राहकों की भीड़ लग जाएगी

वीजा ऑन अराइवल देकर
पर्यटकों को बुलाते है 
मेक इन इंडिया की चाय से
सबकी  आमद बढ़ाते है 

आमदनी के बढ़ते ही
परिवार खुशहाल हो जायेगा
मात्र चाय वाले के प्रयास से
देखो कितना रंग भर जायेगा।

Saturday, October 4, 2014

देश के मेहतर


ठिक बरसात से पहले
सारे मेहतर एकत्र हुए

हर के , एक से  अपने
लोक लुभावन अस्त्र हुए

हर कोई नाले का ढक्कन उठाते है
बासी रसगुल्ला नई चाश्नी में लाते है

कहते है,  आधुनिक औज़ार नया ताज़ा है
पिछले मेहतर से साफ़ करने कि क्षमता ज्यादा है

ढक्क्न हटाकर बदबू फैलाते है
हर टोले -मोहल्ले में शोर मचाते है

बड़े जोर से कान फाड़ू शोर से
चिल्लाकर, जाकर   द्वार - द्वार
कहते,  बेहतर मेहतर हम हैं  यार

मोल - जोल का गेम था
बड़ा - बड़ा कैम्पेन था

 हर गाँव - शहर को  जाते थे 
बड़ - बड़  बोल सुनाते थे

एक बार तो मौका दो
बहुमत का तोहफा दो

भ्रष्टाचार के हाथ हटाएंगे
फूल-कमल खिलायेंगे

 न खाने देंगे ना खानेवाले है
अब अच्छे दिन आनेवाले है

 खुशहाली होगी ना कोई विरोधी होंगे
अबकी प्रधानमंत्री चाय वाले मोदी होंगे

बस इतनी छोटी सी आस पर
सबका साथ सबका विकास पर

हमने बेहतर बुन लिया
देश का मेहतर चुन लिया


Saturday, March 1, 2014

Terminal

बड़ा सोया , सोया सा था
खुद के सपनों में खोया सा था।

फ्यूचर का एहसास हुआ
जागने का प्रयास हुआ

ऐसा नहीं M.B.B.S. कठिन था
Engineering हमारी मेहनत से भिन्न था।

फिर भी उसको छोड़  चला
अपने सपनो कि ओर चला।

थोड़ा दौड़ा थोड़ा भागा
थोड़ा कर लिया रेस्ट।

दोस्तों वक्त हो चला था
फॉर्म भरा , दिया Entrence Test.

टेस्ट रूम कि कहानी सुनाता हूँ
जुबां से अपनी दिल-ए -हाल बताता हूँ.

अपने जोश को खुद में समावेश किया
बड़े कॉन्फिडेन्स से टेस्ट हॉल में प्रवेश किया।

अंदर जाते ही बहुत भीड़ मिला
उसमे से अपना एक वीर मिला।

मै नहीं जनता वह कौन होगा
फ्रेंड बनेगा या कॉलेज से गौण होगा।

ना जाने कितनो का इंसल्ट हुआ
पर दोस्तों हम सब का रिजल्ट हुआ।

एडमिशन लिया कॉलेज आया
सपनो का प्लेटफार्म और बढ़ाया।

सोचा कुछ ख्याति मिलेगी
सीनियर से फ्रेशेर पार्टी मिलेगी।

सपना सब टूट गया
ख्याति पीछे छूट गया।

जिसने जैसा किया वैसा भरेंगे
हम तो अपना क्लास करेंगे।

बड़े अच्छे-अच्छे  टीचर्स थे
एजुकेशन के नए फीचर्स थे।

खुद को इंट्रोड्यूस किया
प्लानिंग कि नॉलेज प्रोडूस किया।

भूलते सीखते फैलते पंख
इंटरनल में लाते अच्छे अंक

प्रोफेसरों से सीख  कर करने लगें क्लास बंक।

बंक-बंक           क्लास बंद
छोटी थी बात हुआ शशि ससपेंड।

झगड़ा झंझट और जोश था
जिसने सुलह किया वह संतोष था।

इसी तरह साल पूरा बीत गया
फ्रेशेर to सीनियर ओहदा मिला।

हमने भी वही गलती कि
फ्रेशरों कि शुरुआत हुई फिकी।

भूल कर सारे दोष अपने
बना लिए नए दोस्त नए सपने।

 रोज लड़ाई , रोज के झगड़े
हर कमेंट हर रिक्वेस्ट

एक दूजे को करे सजेस्ट
 कौन होगा यहाँ सबसे बेस्ट।
 
कुछ खट्टी सी , कुछ मीठी सी
यादों से भरी एक सीटी सी।

सीटी मार माहौल बनाये
यादों का एक शॉल  बनाये।

इस शॉल को सब ओढ़ेंगे
मर्यादा को न तोड़ेंगे।

तोड़ेंगे दीवारों को
गंदी विचारों को।

विचारों से विचार बने
खुशियों का अचार बने।

इस आचार को खाते चल
अपनी आँख लड़ाते चल
दिल कि बात बताते चल।

जो समझे वो अपने है
बाकी सारे सपने है।

सपनो को भुलाना नहीं
अपनों को रुलाना नहीं।

तो ख़ुशी छोड़ कर जायेंगे
एक इतिहास बनाएंगे।

तो एक इरादा करते है
एक दूजे से वादा करते है।

साथ सदा निभाना है
मंजिल को अपने पाना है।

इसी एहसास को जगाये रख
अपनी प्यास बढ़ाये रख।

अभी और भी है सुनाने को
अपनी बात बताने को।

पर क्षितिज के पास शब्द नहीं
विदाई का नहीं ये वक्त सही।

पर समय को किसने रोका है
जीवन का यही झरोखा है।

बस इसी के साथ विराम करू
आप सब को मै सलाम करू।



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