मेरे चहेते मित्र

Thursday, November 15, 2012

सामर्थ




मेरे शब्द कही खो  गए  है
शयद जुबां  में हि सो गए है।

ना जाने क्यूं कविता नहीं बनती
मन में क्यूं इच्छा नहीं जगती ।

की लिखू   क्या   आज  मै
बने कोई आवाज लय ।

की कोई कल्पना कर पाता नहीं
नई कोई रचना आता नहीं ।

कविताये  और भी पुराने है मेरे
पर वो भी आधे उकेरे  से है रे ।

मुझे कतई ग्लानि नहीं की
मेरी सामर्थ कम हो गयी ।

या मेरी रचना शक्ति
यद्पी भंग हो गयी ।

परन्तु हैरान अवश्य हूं
स्वयं से कुंठित विवश हूँ ।

की दिया क्यूं ये शक्ति
जब खोनी ही थी ।

इंशान को कवि की
जब ये होनी ही थी ।

फिर भी जोर लगाता हूँ
अपनी कोशिश को आजमाता हूं ।

शायद कुछ बात बने
मेरी सोच हि कविता का रूप ले ।।


Friday, October 12, 2012

कॉलेज की प्रतियेगिता


हर साल की भांति इस साल भी
प्रतियोगी परीक्षाएं शुरू हो गयीं ।

टी . वी  का स्विच आफ हुआ
किताबे   गुरु   हो        गयी ।

दाखिले    को     है सब परेशान
कट- आफ ने ले ली सबकी जान

IIT,    IIM    पहाड़   बन गया
कोचिंग  फी बुखार बान  गया ।

रेगुलर कोर्स   के   तो    लाले है
वोकेशनल ने ही हमें सम्हाले है

इसमें    भी   इंट्रेंस है  बरा रोड़ा
कईयों    का   इसने सर फोड़ा ।

पिताजी  का  शुरू    हो गया कहर
किताबो तले गुजरता है सातो पहर ।

डर से मन कर रहा थर -थर
कईयों ने खाली  देखो जहर ।

जो     निडर      है    वो    आये     है
किताबो में अश्लील मगज़ीन छुपाये है ।

पिताजी को देते है पल-पल धोखा
पिटे है बियर , विष्की या वोडका ।

पढना जरुरी है सो क्लास करने जायेंगे
दूर के ही कॉलेज में एडमिशन करवाएंगे ।

बिना बाइक  दुरी     नहीं घटेगी
बाइक होगी तभी गिर्ल्फ्रेंड पटेगी ।

गिर्ल्फ्रेंड  पटते  ही कॉलेज भूल जाते है
सिनेमा, पार्क,  और रेस्तरां याद आते है ।

तब     तक      पूरा     साल    बीत    जायेगा
पिछले साल की भांति फिर नया साल आएगा ।।




Saturday, July 21, 2012

बरसात आने से पहले


हर      रात    सोने   से    पहले
जब   पूरी   दुनिया   सन्नाटे में
गुम       हो       जाती          है ।

तब मेढको की महफ़िल जमती है ,
और       कोव्वाली        गाती    है ।

बिस्तर           पर           परे - परे
सुकून        का      शोर    सुनते है ,

और     ये         मेढक       अपना
ताना        बाना         बुनते    है ।

शूरु   करते है एक आइटम साँग ,
मनुष्य   सोचते  है   हमेशा रांग ।

आइटम    में   भी    भक्ति     होती   है ,
बारिस को बुलाने की सकती होती है ।

माइकल जैक्सन  और A .R . रहमान भी फेल होता है
मुजिक         का           नया        मेल       होता      है ।

सम्पूर्ण      वादी        ऑडिएंस     बन      जाती    है ,
ठंडी   हवाए   स्पोंसर   करने   जाने कहाँ से आती है ।

स्पोंसर       मिलते    ही  बनती है  टीम भावना ,
मेढको     की    फ़ौज   बन्ने की है , सम्भावना ।

कुछ    गली   में ,     कुछ     नली   में ,
कुछ दीवार की    तली में घाट लगाते है,
डर  से अब सारे पेड़ म्यूजिक  बजाते है ।

और    ये    मेढक    गला फार कर ,
Rock    -    Pop     गाते         है ।

नया म्यूजिक सुनकर सब कायल हो जाते है,
देखो      बदल     भी    घूम-घूम   कर आते है ।

प्रोग्राम      सुनने     को        पब्लिक     मंडराती     है ,
 इसी बिच कुछ बादलों की आपस में टक्कर हो जाती है ।

सिचुयेसन      बहुत    ख़राब   है,   माहौल पूरा गरम ,
बादलों    की   लड़ाई   में   हुई   बहुत धराम -धरम ।

सब    बरसे   सब   पर  ,   हो   गए   सब लत-पत ,
प्रोग्राम   का बनता धर हुआ , मेरा गया जूता फट ।

और       कुछ     खोने     से      पहले ,
 दोस्तों  ज्यादा बारिश होने से पहले ।

,मै    घर     को    जाता     हूँ ,
सड़क       छोर       जाता हूँ ।

वरना  जल जमाव हो जायेगा ,
मेढक      इसमें         नहायेगा
और अपना कवि  डूब जायेगा ।


 


Wednesday, April 25, 2012

निर्दोष सब्जियों का कष्टपूर्ण जीवन


कल रात  के भयंकर दंगे  ने ,जाने
कितने मासूमों  को निगल लिया ।
उनके  अध्   कटे  अंग  सड़क पर
यहाँ - वहां, जहाँ-तहां बिखरे धर।


इन   गुलाम   सब्जियों   की रोज
बोली लगातें कसाई  सामान ग्राहक
उन्हें बेचते खूंखार निर्मम सब्जीवाले ।

वो   टुकुर -  टुकुर  देखती थी परवल
गोभियों   की   भी  थी वहां हलचल
प्राण  के  लाले  थे  वहां   हर-पल ।

देखा था मैंने, बैगन को मुह चमकाते
उसके  करीब  जल्दी  कोई नहीं जातें
कटहल के अध् कटे सर टोकरियों में परें थे
और उनको खरीदने वाले भी ग्राहक बरे थे ।

प्याज देखकर सभी के आखों में पानी आते
सभी अपना बटुआ- पैसा  या नोट मिलातें

गरीब  आम आदमी की भांति,आलुओं को
  32-40 रूपए  पसेरी   का  भाव  मिलता
मिटटी में  सने गरीबों सा घाव मिलता।

वो बेबस देखता   सामने वाले ठेले पर
रखे   अंगूर-  सेव-  संतरे की   ठाठ,
देश के  नेताओं की  जैसी  होती है बात ।

वो टमाटर मुखबरी का करते है काम,
सो उनको गवानी परती है अपनी जान
हर  रोज   इनके  खून  से  भरी  लाशें
सड़क पर सुबह देखने को मिलती है |
ना जाने इसमें उन किसानो की क्या गलती है,

जो बरे नाजों-ख्यालों  से इन्हें पालते है ,
सजा-सजा कर छोटे बड़े बक्सों में डालते है।
कभी सलाद में तो कभी सब्जिओं में ,
तो कभी समोसे की चटनियों में पाए जाते है
और पकडे जाने पर बरी बेशर्मी से खाए जाते है।    

हर रोज इन्हें खरीद लोग घर को ले जाते  है ,
कुछ फ्रिज तो कुछ टोकरियों में जगह पाते है ।
चाकू और करची के बल इनको  नचाते  है ,
हर रोज गरम आग पर इनको चलाते है ।

इनके कटे घाव पर स्वाद -अनुसार नमक डालते है ,
और ना जाने कितने गर्म तेल में इन्हें उबालते  है ।
आखिर कार इन्हें लज़ीज़ , स्वादिस्ट का ,
मेडल-तमगा      देकर     निगल   जाते है ,
और इनाम बीवियों   के हवाले   थमाते है। 








Friday, February 3, 2012

ट्राफिक जाम

जब नींद ही देर से खुलेगी 
तो दोस्तों   देर तो होगी ही 
सुना है   दुर्घटना से    देरी भली 
पर    जिन्दगी    देर    बनजाये 
तो    दुर्घटना    बन    जाती   है 
हर दुर्घटना जाम का कारण होती है ।
 चाहे  सड़क  हो या जिन्दगी
 जाम      तो    लगेगी      ही 
 कभी रास्ते जाम  होते    है 
 तो  कभी ख्वाहिशें रुक जातें है
और  जिन्दगी पेट्रोल  की तरह
अपनी रफ़्तार में खर्च होते जाती  है।
 हम ऐसी   गाड़ी में बैठे सवारी हैं
जिसके ड्राईवर को रोकना
किसी के हाँथ में नहीं है ।
वो अपनी मर्जी से गाड़ी चलाएगा
ना जाने   किन - किन रास्तों पर
जिन्दगी  को  कब -कब ले जाएगा ।
जिन्दगी उसी ड्राइवर के रहमो कर्म पर चलेगा
कभी जाम तो कभी अंधाधुंध रफ़्तार मिलेगा ।
अर्चनो की तरह गढ्ढे मिलेंगे
और अंधे मोड़ मिलेंगे धोके जैसा ।
जिन्दगी को ताख पर रख
कभी ना सोचना ऐसा - वैसा
गर तू चाहता है, जाये इस जाम से निकल
ना हो कभी जिन्दगी में विफल
तो कूदना परेगा इस रफ़्तार भरी गाड़ी  से
और जूझना परेगा इस जाम की बिमारी से ।
बजते  हार्न की तरह चिल्लाने से फायेदा नहीं
सुनते सब है , पर बनते बहरे है सभी ।
रास्ता तुझे अपना  बदलना होगा
आखिर कार पैदल अकेला चलना  होगा ।
तू थक जायेगा, पैदल अकेला चलते - चलते
या मर जायेगा ....................!,
एमबुलंस के मरीज सरीखे जाम से निकलते
अगर डर है तो जीवन अपना यही निर्वाह कर ले
वरना  जा अपने रस्ते तलाश , समय की परवाह कर ले ।
क्योंकि जिन्दगी बार - बार नहीं आयेगी
जाम तो हर बार लग जाएगी ।


  

Saturday, January 7, 2012

सन्नाटा

सन्नाटा क्या होता है 
सिर्फ मन का गूंगा पन
क्योंकि शोर तो सन्नाटे में  भी होता  है 
जिसमें आवाज नहीं आने की 
डर हमें सताती है 
और अगर कोई आवाज कानो तक 
पहुचे उसकी इन्तेजार में ही सहम जातें है
पर कोई भी लब्ज़  हमें सुनाई नहीं देती है 
तेज बारिश में ,सुनसान सड़क पर 
किसी के ना होने पर 
हमें सन्नाटा सा लगता है 
और भरी महफ़िल में 
किसी पहचान के बिना  हम  
सन्नाटा महसूस करते है 
सर्द हवाओं में भी हम 
सूरज के छुपने पर 
सन्नाटा सा पातें है 
और कड़ी  धुप में 
जलता बदन सन्नाटा महसूस करता है 
मै कवी हूँ और अर्थ से परे लिखना मेरी आदत है 
इसलिए सन्नाटे को शोर का 
रिश्तेदार जनता हूँ 
जो की शोर से कहीं ज्यादा 
प्रभावशाली है 
शोर तो सिर्फ बहार से विचलित करता है 
पर ये सन्नाटा उंदर अन्तः मन को भी झकझोर देता है 
और मै इसी सन्नाटे को 
अपना दोस्त बना चूका हूँ 
जो की मेरे अन्तः मन को रोज  झकझोरता है 
और रोज मै डरा डरा सा खुद को पता हूँ 



Friday, January 6, 2012

अल्फाज़ मेरे

मै बहुत ही नीच किस्म का कवी हूँ |
कभी भी अच्छे स्वर उचारित अथवा प्रकाशित करने की छमता नहीं है मुझमें ,
हमेसा ओछी शब्दों के पीछे भागता रहा हूँ |
जहाँ भी जाता हूँ ये शब्द मेरे साथ रहें  है, 
और सहारा के नाम पे इसने मेरा शोषण किया है| 
हर बार सोचता हूँ मेरे शब्दों में वो जादू क्यों नहीं है,
 जो दुसरे सुनकर मेरी ओर खिचे चले आते न  हैं |
क्यों मेरा एक अलग अंदाज  नहीं है,
 जो मेरे आलावा सभी के पास है| 
कोई कन्नड़ जनता है तो कोई बंगाली ,
पर अपने जुबान की पेटी तो है बिलकुल खली| 
मैं अपनी भाषा तक  भी नहीं जनता हूँ,
और शैली कहाँ से लाऊं मैं ,
मुझे क्या पता कौन सी बात किसको बुरी लगे गी 
मैंने तो सिर्फ बोलना ही सिखा है 
वो भी इसी समाज से जो ना जाने कैसे इतनी अच्छी बोल लेती है |
भीड़ में कोई मेरी क्यों सुनता नही है 
और अकेले मै किस्से बातें करूँ |
में तो भीड़ में भी तनहा सा हूँ 
और अकेले में ना जाने किस महफ़िल से बाते करता हूँ |
ये मेरे अल्फाज़ को भी नहीं पता है 
की मेरा अल्फाज़ क्या है |
 




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