सुबह -सुबह वो जाग कर
कोयले के ढेर में जाते है
उन ढेरों में से छांट कर
जरुरत के टुकड़े लाते है
कल रात की हुई बारिश में
कोयला भी गीला -गीला है
चूल्हे की भींगी राख भी
थोड़ा सख्त और गठीला है
फिर भी चूल्हे को जलाना है
रोजी -रोटी तो कमाना है
चाय के जो दिवाने हैं
उनको तो चाय पिलाना हैं
कश्मीर सी डूबी बारिश में
कुछ तीली की माचिश में
कैसे चूल्हे को जलाएंगे
जन -धन योजना लाएंगे
गाँधी जी का एक डंडा है
अनुशरण करता वो बंदा है
चूल्हे में जमें सख्त राख को
क्रन्तिकारी सी झकझोरे वो
जो राख नीचे गिर जाएंगे
उनसे गड्ढे भरे जायेंगे
रामरस मिट्टी को लेपकर
चूल्हे को पुनः चमकाएंगे
चूल्हे को चमकाने में
गंदगी फैली जो आस-पास
झाड़ू को हाथ में लेकर वो
शुरू किया एक साझा प्रयास
इस स्वछता अभियान से
प्यार, व्यवहार सम्मान से
अच्छे ग्राहक भी आएंगे
हम से हीं चाय बनवायेंगे
ये तो मात्र अभिव्यक्ति थी
यात्रा की एक शुक्ति थी
गीले चूल्हे को जलाने की
सूखे गोयठे की युक्ति थी
चूल्हे में आग सुलगते ही
पड़ोस धुआंधार क्यों होता है
जिंपिंग के दिए खिलौने के
आँखों में जलन क्यों दिखता है
आँच के धधकने पर
टी-पैन उसपर चढातें है
चीनी , दूध , पत्ती के साथ
अदरक - इलाइची मिलाते है
चाय की मोहक सुगन्ध जब
विदेशी धरा तक जाएगी
सेंट्रलपार्क से मेडिसन तक
ग्राहकों की भीड़ लग जाएगी
वीजा ऑन अराइवल देकर
पर्यटकों को बुलाते है
मेक इन इंडिया की चाय से
सबकी आमद बढ़ाते है
आमदनी के बढ़ते ही
परिवार खुशहाल हो जायेगा
मात्र चाय वाले के प्रयास से
देखो कितना रंग भर जायेगा।
अति सुन्दर गीत ...
ReplyDeleteसमसायिक मुद्दे पर बहुत सुन्दर काव्यात्मक प्रस्तुति....
ReplyDeleteऎसी रचनाएँ रोमांचित कर जाती हैं... एक अलग प्रकार का रोमांच होता है.
ReplyDeleteजो राख नीचे गिर जाएंगे उनसे गड्ढे भरे जायेंगे रामरस मिट्टी को लेपकर चूल्हे को पुनः चमकाएंगे
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति।