बहुत बना ली जलेबी
खा-ली, समोसा और कचौरी
कर ली दौरा दौड़ी
अब सांस लेता हूँ मै थोड़ी
सुनाता हूँ मै दिल की बात
हुआ मेरे साथ जो पिछली रात
महानगर की सड़कों पे
अकेला विचरण करता मै
छोटी छोटी मलिन बस्तियों को
अट्टालिकाओं पे धरता मै
लेकर सहर्ष सा स्वभाव
खाया करता था बड़ा पाव
न स्वाद था ना ज्यादा भाव
पर लोगो का था बड़ा चाव
देख कर माहौल चला
सामने वाले मॉल चला
जगमग प्रकाश के बीच
कुछ देशी-विदेशी दुकाने थी
उनमे सस्ती महंगी समाने थी
खरीदारी करते कुछ हसबैंड, बॉयफ्रेंड
उनकी गिर्ल्फ्रिंड और शायद घरवाली
और कुछ एनाउंसमेंट कर रही थी
मॉल के बीच वो इवेंट करने वाली
आ जाओ सब सच्चे बच्चे
खेलें कुछ खेल हम अच्छे
धमा चौकड़ी कर
बच्चों ने उत्पात मचाया
उसे देख मुझे मेरा
बचपन याद आया
मन ही मन मुस्काते खुद से बातेँ करता
उन बच्चों में खुद को आप देखा करता
सवाल था क्यूँ उदास हु
क्या है मुझमे कमी
तभी एक आवाज आई
एक्सक्यूज मी , एक्सक्यूज मी ,
हाई फ्रीक्वेंसी की मध्यम सुर वाली
ध्वनि पीछा कर रही थी
मेरी तंत्रिका तंत्र से जुड़कर
आँख, कान, पैरों को जकड़ रही थी
अपनी सोच से निकल नयन घुमा रहा था
ध्वनि किधर से आयी उसे ढूंढे जा रहा था
बायें तरफ खड़ी एक सुन्दर स्त्रि
हुस्न से लबरेज़ औ नग्ण्ता से भरी
बार-बार मुझे बुला रही थी
एक्सक्यूज मी एक पिक्चर खीच दो
कह कर आग्रह जता रही थी
अपनी साथी संग वो स्वांग रचाए
अजंता-ऐलोरा का दृस्य खिचवाये
मै कुंठित निर्लज् फोटो खींचे जा रहा था
खुद की भावनाओं को पीटे जा रहा था
खुद को पीट थक जाने के बाद
मै थम गया
फोटो खिंच मोबाइल देकर
मेरा गम गया
अब बस बहुत हुआ ये तमाशा
नहीं खाना है मुझको अब बताशा
सिर्फ बनाऊगा अब रसगुल्ला
खाऊंगा रसमलाई
काजूकतली के साथ चोको पाई।
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