मेरे चहेते मित्र

Saturday, July 30, 2011

दो गिलहरी

मेरे कॉलेज के प्रांगन  में
दो गिलहरी थे मग्न से  I 
कभी पेड़ पर कभी दीवारों के ऊपर चढ़ते दन से I
कभी खिडकियों  से झाका  करते 
क्या शिक्षक पढ़ाते मन से I 
कबी कूद कर जामुन के पेड़ो पर जाते सन से 
झकझोरे डाली को ऐसे हो नई योवन से 
कभी दौर कर वर्ग में जाते 
कभी खाल्ली को उठाते 
कभी घुर कर देखा करते क्या बच्चे पढ़ते लगन से 
मेरे कॉलेज के प्रांगन में 
दो गिलहरी थे मगन से I

Thursday, July 21, 2011

बुख़ार

आज मेरा मन थका- थका सा लाचार है 
शायद मुझे थोरा बुख़ार है 
दुसरे का बोझ उठाना तो दूर 
अपना कन्धा ही भार है  
आंखे देखने को बार बार खोलता हूँ मैं 
पर ना जाने कैसी इसमें खुमार है  
चाहता तो हूँ दौर कर दुनिया घूम लूं 
पर अपनी टांगे बेबस बेकार है 
मन की बात तो बताना चाहता हूँ 
ना जाने इसपर  कैसा भार है 
पूरी दुनिया को जोड़ने की ख़ाहिश है 
पर अपना हीं बदन  टूटकर बेज़ार है





Wednesday, July 6, 2011

उसकी मांग

आज मेरे खून का जवाब माँगा गया 
उसके हर बूंद का हिसाब माँगा गया 
जो भी मिला था जीने के  लिए  
उसकी कहानियों का किताब माँगा गया 
 परत दर  परत जोड़कर जिन्दा हूँ 
आज उसके भी फटे जुराब माँगा गया 
माना की तन ढकने को कपडे  दिए थे 
पर आज वो सारे कपडे  ख़राब माँगा गया 
जब भी रोता था भूख से तड़प कर 
तब तब मुझसे थाली का आकार माँगा गया 
जब भी नींद आती थी मुझको 
तब तब सोने का अधिकार माँगा गया 
चलते चलते जब भी थक कर हार जाता था 
मुझसे दौड़ने का व्यव्हार माँगा गया 
देखता था ढेर सारे सपने हर रोज़ 
उनसे नाता तोड़ने का आधार माँगा गया 




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