आज मेरा मन थका- थका सा लाचार है
शायद मुझे थोरा बुख़ार है
दुसरे का बोझ उठाना तो दूर
अपना कन्धा ही भार है
आंखे देखने को बार बार खोलता हूँ मैं
पर ना जाने कैसी इसमें खुमार है
चाहता तो हूँ दौर कर दुनिया घूम लूं
पर अपनी टांगे बेबस बेकार है
मन की बात तो बताना चाहता हूँ
ना जाने इसपर कैसा भार है
पूरी दुनिया को जोड़ने की ख़ाहिश है
पर अपना हीं बदन टूटकर बेज़ार है
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