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Sunday, January 20, 2013

रेप का महान कुम्भ


काफी दिनों से  मौन था 
कविताओं की दुनियां से गौण था ।

अचानक हस्क्षतेप हुआ 
सुनने में आया की रेप हुआ ।

बात फ़ैल गई चारो ऒर 
सजा दिलाओ यही था शोर। 

आओ सूली चढ़ा देते है 
सरेआम उसे जला देते है ।

बनायें कुछ नया कानून 
हर जुबान पर इसी की  धुन ।

जंगल में आग सी लग गई 
गिडरों की भगदर मच गई ।

सब अपनी  जान बचाते थे 
भेड़-बयान  सुनाते थे ।

पर-संस्कृति पर प्रहार हो 
या अपने चरित्र का उद्धार हो ।

सीमाओं  को ना पार करो 
तालिबानी फरमान गाठ धरो ।

न्याय त्वरित करवाई हो 
बहस नहीं लड़ाई हो ।
                                                
तभी एक ब्रेक हुआ 
इस बार देश का रेप हुआ ।

सर काट के ले गएँ  वो 
दुश्मन देश के थे जो।

मुद्दा अब बदल गया 
हर दिल में इसका दख़ल  गया  ।

न्याय मिले, ना, क्या गम है 
देश के क्रन्तिकारी हम है ।

सारे गिडर सियार हो गएँ 
देखो कितने होशियार हो गएँ ।

विरांगनी करुण पुकार करे 
 वीर के मुख का इन्तेजार करे ।

उसकी भी आखरी चाहत थी 
उनके मुख को देख पाती ।

संभव न था वापस लाना 
सो देते रहे सांत्वना ।

दुःख से वो बेहाल हुई 
घर में ही भूख हड़ताल हुई ।

सियार  काफी डर गए 
इसिलिय  उसके घर गए ।

वही  पुरानी   चाल चली 
रुपये-रोजगार पर  दाल गली ।

हर-पल रेप यहाँ होता है 
ये देश अपना एकलौता है ।

 बड़ा  पवित्र स्थान है ये 
कुम्भ की धरती महान है ये।
                                                                
भ्रदरा  का जहाँ मिलन हुआ              भ्रदरा= (भ्रष्टाचार-दरिदगी-राजनीती)
रेप का कुम्भ वहां उद्गमन हुआ ।

आओ मिलकर रेप करें 
काम तो कुछ नेक करें ।

भ्रष्टाचार की इज्जत लूट लो 
खूंखार  की इज्जत लुट लो ।

राजनीती को हम नग्न करें 
महंगाई का चिर हरन  करें ।

रेप का कुम्भ महान है 
करले तू भी स्नान हे ।













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