हुँकार हो अब,
ना धैर्य धरूँ
हुए शत्रू तो,
मै बैर करू
क्रोद्ध को कम ना होने दो
शोलों को तुम ना सोने दो
चिंगारी कहीं भी हो यदि
उसको भड़का तू अभी यहीं
किसका आश तू जोहे है
चुप क्यूँ खुद में ही खोए है
चल जाग-जाग, लगा आग-आग
युद्ध की तैयार कर कुंभ-प्रयाग
चल बाढ़ बन के आते है
उनको घर तक से भगाते है
मित्रता की न अब बात करो
शत्रू हो, उपहार लो, मौत धरो
आकाल सा उनका हाल करो
श्वासों तक के लिए मुहाल करो
भूकम्प तू ऐसा उत्पन्न कर
थर्राए वे खुद जीवन से डर
तुफानो सा हाँ वार करो
नामों-निशाँ तक उजार धरो
बन प्रलय तू ऐसा विध्वंश ला
ना अंश मिले, दे मिट्टी में मिला
गर कोई तुझे जो रोकेगा
सर काट हवन-कुण्ड में, झोके जा
जो बागी देश को ऐठें है
सत्ता में जा के बठे है
भारत माँ को नोचे-लुटे
बरे हर्ष से उनके व्यंग छूटे
चल उनका व्यंग बनाते है
आखे फोड़ धुल चटाते है
शहीदों की जिनकों परवाह नहीं
दिखता कुर्सी के सिवा नहीं
उठ युवा तू अब संहार कर
क्षितिज बोले हुँकार कर
अब किसकी तुझे प्रतीक्षा है
महाकाल की भी यही इच्छा है
मन का मोहन तू चुप है क्यूँ
आँखे खोल देख अपनों का लहू
हर दिन आगे वो बढ़ते है
सरजमीं पे अपने चढ़ते है
एक बार तो तू साहस दे
बंधन को तोड़ अब तर्कष दे
गर तेरा अब इख्तियार नहीं
और तुझे देश से प्यार नहीं
तो त्याग दे शासन का तू मोह
देश छोर, पदग्रहण कर शत्रू गिरोह
हम तुझको भी दिखला देंगे
भक्ति क्या है सिखला देंगे
देखो बादल भी सोती है
वर्षा भी अब ना होती है
फिर भी नदियों में बाढ़ है
प्रकृति प्रलय प्रहार है
हर कण क्रोद्धित अब गुस्सा है
फिर भी तू क्यूँ चुप सा है
ए बादल तू अब गरज-गरज
वर्षा बन तू अब बरस-बरस
सुनामी सा प्रलय बरपा
क्रोद्ध अपना उनको दिखा
बन सिंह समान दहाड़ कर
अब शत्रू का संहार कर
कद बढ़ा ले तू पहाड़ कर
शक्ति की अपनी विस्तार कर
कुचल दे उन कीड़ों को
ललकारे जो अपने वीरों को
क्षितिज चिल्लाए पुकार कर
हुँकार कर हुँकार कर
ना धैर्य धरूँ
हुए शत्रू तो,
मै बैर करू
क्रोद्ध को कम ना होने दो
शोलों को तुम ना सोने दो
चिंगारी कहीं भी हो यदि
उसको भड़का तू अभी यहीं
किसका आश तू जोहे है
चुप क्यूँ खुद में ही खोए है
चल जाग-जाग, लगा आग-आग
युद्ध की तैयार कर कुंभ-प्रयाग
चल बाढ़ बन के आते है
उनको घर तक से भगाते है
मित्रता की न अब बात करो
शत्रू हो, उपहार लो, मौत धरो
आकाल सा उनका हाल करो
श्वासों तक के लिए मुहाल करो
भूकम्प तू ऐसा उत्पन्न कर
थर्राए वे खुद जीवन से डर
तुफानो सा हाँ वार करो
नामों-निशाँ तक उजार धरो
बन प्रलय तू ऐसा विध्वंश ला
ना अंश मिले, दे मिट्टी में मिला
गर कोई तुझे जो रोकेगा
सर काट हवन-कुण्ड में, झोके जा
जो बागी देश को ऐठें है
सत्ता में जा के बठे है
भारत माँ को नोचे-लुटे
बरे हर्ष से उनके व्यंग छूटे
चल उनका व्यंग बनाते है
आखे फोड़ धुल चटाते है
शहीदों की जिनकों परवाह नहीं
दिखता कुर्सी के सिवा नहीं
उठ युवा तू अब संहार कर
क्षितिज बोले हुँकार कर
अब किसकी तुझे प्रतीक्षा है
महाकाल की भी यही इच्छा है
मन का मोहन तू चुप है क्यूँ
आँखे खोल देख अपनों का लहू
हर दिन आगे वो बढ़ते है
सरजमीं पे अपने चढ़ते है
एक बार तो तू साहस दे
बंधन को तोड़ अब तर्कष दे
गर तेरा अब इख्तियार नहीं
और तुझे देश से प्यार नहीं
तो त्याग दे शासन का तू मोह
देश छोर, पदग्रहण कर शत्रू गिरोह
हम तुझको भी दिखला देंगे
भक्ति क्या है सिखला देंगे
देखो बादल भी सोती है
वर्षा भी अब ना होती है
फिर भी नदियों में बाढ़ है
प्रकृति प्रलय प्रहार है
हर कण क्रोद्धित अब गुस्सा है
फिर भी तू क्यूँ चुप सा है
ए बादल तू अब गरज-गरज
वर्षा बन तू अब बरस-बरस
सुनामी सा प्रलय बरपा
क्रोद्ध अपना उनको दिखा
बन सिंह समान दहाड़ कर
अब शत्रू का संहार कर
कद बढ़ा ले तू पहाड़ कर
शक्ति की अपनी विस्तार कर
कुचल दे उन कीड़ों को
ललकारे जो अपने वीरों को
क्षितिज चिल्लाए पुकार कर
हुँकार कर हुँकार कर
Superb!!!!
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