मेरे चहेते मित्र

Sunday, April 19, 2015

खोद लूँ कब्र या गुलिस्तां उगाऊँ


दो टुकड़े इज़्ज़त के कैसे लाऊँ


तिनका कहाँ से ढूँढू 


कैसे आशियाना बनाऊं 


इस खूंखार जंगल में 


दो पल चैन कहाँ पाऊँ 


समुद्र के बीच हूँ 


फिर भी प्यासा हूँ 


कैसे बारीश बुलाऊँ 


अपनी प्यास बुझाऊँ 


धुप से बदन जल पड़ा है 


कहाँ पेड़ लगाऊँ 


कब छाह मैं पाऊँ 


दो गज़ ज़मीं खोद लूँ कब्र की 


या उस ज़मीं पर गुलिस्तां उगाऊँ

Monday, February 23, 2015

खुद को झंझोड़ता

हर रोज दौड़ता
खुद को झंझोड़ता
बेड़ियों से बांध कर
बेड़ियों को तोड़ता
खुशियों की चाह में
ग़मों को छोरता
गम जो मिल जाए तो
ख़ुशी का दिल तोड़ता
फिर सँभालने दिल को
खुद दिलों को जोड़ता
टूटे ना दिल फिर से
सो दुनिया से मुह मोड़ता
लोगों से मुह मोड़ लूँ
तो ये लोग मुझसे बोलता
मेरी हैसियत को दुनिया
अपनी नज़रों से तौलता
इस बात पर मेरा
खून क्यों खौलता
अपनी हैसियत पाने को
मै हर रोज दौड़ता
खुद को झंझोड़ता

Wednesday, February 4, 2015

हे कृष्ण जरा तू बतलाना


हे कृष्ण जरा तू बतलाना
क्यों सीखा माखन चुराना

क्या स्वाद का आकर्षण था
या माखन में तेरा जीवन था

गर तू माखन चोर था
फिर क्यों इसका शोर था

सब जान गयें वो चोरी क्या
कि ज्यादा हो या थोरी क्या

तेरे जीवन के दर्पण में
देखूँ मैं खुद के मन को

मैं भी तो माखन चोर था
जब भी करता पकड़ा जाता

फिर तेरा क्यू नाम हुआ
और मैं क्यूँ बदनाम हुआ।


हे कृष्ण जरा तू बतलाना
अपने मन की पीड़ा को

हा देख लिया मैंने भी
उस प्रेम दिवानी मीरा को

मन ही मन तुझसे प्रेम करे
पूजे माने दुनिया से डरे

थी क्यों गृहस्थ जीवन में
बंधी थी किस बंधन में

तू तो जग का  तारण है
बंधन मुक्ति तेरे चरणन है

कर देता मुक्त उस मीरा को
हर लेता प्रेम की पीड़ा को

न कोई जग में है ऐसे
हिम्मत तुझे बांध सके

किस बात की है तुझे फिकर
जो खड़ा है खुद को बांध कर

ये तेरा कोई बहाना था
मीरा से दुर या जाना था

रहस्य क्या ये स्पष्ट कर
जीवन मेरा तुझपे निर्भर।


हे कृष्ण जरा तू बतलाना
नंद का था तू एक सयाना
फिर हुआ मथुरा को जाना

किसका तुझे मिला आशिष
बन  गया  तू  द्धारकाधीश

निभाए कैसे अपने कर्म
दिखाये क्या क्या पराक्रम

कैसे निकाले राह के रोड़े
सहन किए संसार के कोड़े

मै भी इसी संसार में हूं
जीवन फसी मझधार क्यूँ

मुझे भी दे सम्पूर्ण ज्ञान
मिले मुझे मान-सम्मान




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