मेरे चहेते मित्र

Monday, February 23, 2015

खुद को झंझोड़ता

हर रोज दौड़ता
खुद को झंझोड़ता
बेड़ियों से बांध कर
बेड़ियों को तोड़ता
खुशियों की चाह में
ग़मों को छोरता
गम जो मिल जाए तो
ख़ुशी का दिल तोड़ता
फिर सँभालने दिल को
खुद दिलों को जोड़ता
टूटे ना दिल फिर से
सो दुनिया से मुह मोड़ता
लोगों से मुह मोड़ लूँ
तो ये लोग मुझसे बोलता
मेरी हैसियत को दुनिया
अपनी नज़रों से तौलता
इस बात पर मेरा
खून क्यों खौलता
अपनी हैसियत पाने को
मै हर रोज दौड़ता
खुद को झंझोड़ता

No comments:

Post a Comment

Post a Comment

Post a Comment

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...