हे कृष्ण जरा तू बतलाना
क्यों सीखा माखन चुराना
क्या स्वाद का आकर्षण था
या माखन में तेरा जीवन था
गर तू माखन चोर था
फिर क्यों इसका शोर था
सब जान गयें वो चोरी क्या
कि ज्यादा हो या थोरी क्या
तेरे जीवन के दर्पण में
देखूँ मैं खुद के मन को
मैं भी तो माखन चोर था
जब भी करता पकड़ा जाता
फिर तेरा क्यू नाम हुआ
और मैं क्यूँ बदनाम हुआ।
हे कृष्ण जरा तू बतलाना
अपने मन की पीड़ा को
हा देख लिया मैंने भी
उस प्रेम दिवानी मीरा को
मन ही मन तुझसे प्रेम करे
पूजे माने दुनिया से डरे
थी क्यों गृहस्थ जीवन में
बंधी थी किस बंधन में
तू तो जग का तारण है
बंधन मुक्ति तेरे चरणन है
कर देता मुक्त उस मीरा को
हर लेता प्रेम की पीड़ा को
न कोई जग में है ऐसे
हिम्मत तुझे बांध सके
किस बात की है तुझे फिकर
जो खड़ा है खुद को बांध कर
ये तेरा कोई बहाना था
मीरा से दुर या जाना था
रहस्य क्या ये स्पष्ट कर
जीवन मेरा तुझपे निर्भर।
हे कृष्ण जरा तू बतलाना
नंद का था तू एक सयाना
फिर हुआ मथुरा को जाना
किसका तुझे मिला आशिष
बन गया तू द्धारकाधीश
निभाए कैसे अपने कर्म
दिखाये क्या क्या पराक्रम
कैसे निकाले राह के रोड़े
सहन किए संसार के कोड़े
मै भी इसी संसार में हूं
जीवन फसी मझधार क्यूँ
मुझे भी दे सम्पूर्ण ज्ञान
मिले मुझे मान-सम्मान
क्षितिज जी,
ReplyDeleteआपने मुझे अपने नेटवर्क में जोड़ा . बहुत धन्यवाद. आपका यह ब्लॉग पोस्ट पढ़ा.
विचारों में सफाई दिखी, अच्छा लगा. एक सुझाव मैं देना चाहूँगा कि शब्दों के चयन में थोड़ी सार्थकता बरतें कि सुनने में प्रवाहमयी लगे. वैसे यह कोई जरूरी नहीं है कि कविता की पंक्तियां स्वरांतिक हों किंतु यदि हो सके तो अच्छा लगता है. दूसरा यह कि पोस्ट करने के पहले एक बार पढ़कर हिज्जे ( स्पेलिंग) चेक कर लें. उम्मीद है आप इसका बुरा नहीं मानेंगे.
अयंगर. 8462021340.