आज मेरे खून का जवाब माँगा गया
उसके हर बूंद का हिसाब माँगा गया
जो भी मिला था जीने के लिए
उसकी कहानियों का किताब माँगा गया
परत दर परत जोड़कर जिन्दा हूँ
आज उसके भी फटे जुराब माँगा गया
माना की तन ढकने को कपडे दिए थे
पर आज वो सारे कपडे ख़राब माँगा गया
जब भी रोता था भूख से तड़प कर
तब तब मुझसे थाली का आकार माँगा गया
जब भी नींद आती थी मुझको
तब तब सोने का अधिकार माँगा गया
चलते चलते जब भी थक कर हार जाता था
मुझसे दौड़ने का व्यव्हार माँगा गया
देखता था ढेर सारे सपने हर रोज़
उनसे नाता तोड़ने का आधार माँगा गया
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