मेरे चहेते मित्र

Wednesday, April 25, 2012

निर्दोष सब्जियों का कष्टपूर्ण जीवन


कल रात  के भयंकर दंगे  ने ,जाने
कितने मासूमों  को निगल लिया ।
उनके  अध्   कटे  अंग  सड़क पर
यहाँ - वहां, जहाँ-तहां बिखरे धर।


इन   गुलाम   सब्जियों   की रोज
बोली लगातें कसाई  सामान ग्राहक
उन्हें बेचते खूंखार निर्मम सब्जीवाले ।

वो   टुकुर -  टुकुर  देखती थी परवल
गोभियों   की   भी  थी वहां हलचल
प्राण  के  लाले  थे  वहां   हर-पल ।

देखा था मैंने, बैगन को मुह चमकाते
उसके  करीब  जल्दी  कोई नहीं जातें
कटहल के अध् कटे सर टोकरियों में परें थे
और उनको खरीदने वाले भी ग्राहक बरे थे ।

प्याज देखकर सभी के आखों में पानी आते
सभी अपना बटुआ- पैसा  या नोट मिलातें

गरीब  आम आदमी की भांति,आलुओं को
  32-40 रूपए  पसेरी   का  भाव  मिलता
मिटटी में  सने गरीबों सा घाव मिलता।

वो बेबस देखता   सामने वाले ठेले पर
रखे   अंगूर-  सेव-  संतरे की   ठाठ,
देश के  नेताओं की  जैसी  होती है बात ।

वो टमाटर मुखबरी का करते है काम,
सो उनको गवानी परती है अपनी जान
हर  रोज   इनके  खून  से  भरी  लाशें
सड़क पर सुबह देखने को मिलती है |
ना जाने इसमें उन किसानो की क्या गलती है,

जो बरे नाजों-ख्यालों  से इन्हें पालते है ,
सजा-सजा कर छोटे बड़े बक्सों में डालते है।
कभी सलाद में तो कभी सब्जिओं में ,
तो कभी समोसे की चटनियों में पाए जाते है
और पकडे जाने पर बरी बेशर्मी से खाए जाते है।    

हर रोज इन्हें खरीद लोग घर को ले जाते  है ,
कुछ फ्रिज तो कुछ टोकरियों में जगह पाते है ।
चाकू और करची के बल इनको  नचाते  है ,
हर रोज गरम आग पर इनको चलाते है ।

इनके कटे घाव पर स्वाद -अनुसार नमक डालते है ,
और ना जाने कितने गर्म तेल में इन्हें उबालते  है ।
आखिर कार इन्हें लज़ीज़ , स्वादिस्ट का ,
मेडल-तमगा      देकर     निगल   जाते है ,
और इनाम बीवियों   के हवाले   थमाते है। 








1 comment:

Post a Comment

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...