मेरे चहेते मित्र

Monday, October 3, 2011

मीठा पुर का पुल और पटना

आज पटना शहर थोरी उचीं लग रही थी 
क्योंकी उसमे एक नई पुल जुट गयी थी 
नए रास्तो का अनुभव बड़ा अजीब था 
क्योंकि कुछ आमिर था तो कुछ गरीब था 
जिनको हमने  अक्सर सर उठा के देखा था
वे आज छोटी, बौनी  और गन्दा सा था 
कौन सी रेल अब किधर को जाएगी 
हमें अब मालुम पड़ जाएगी............
pearl  की टूटी दीवारों से उसकी नाम 
आज भी मोतिओं सी चमक रही थी 
आज उचाई से मुझे वो भी दिख रही थी
पर उसके पीछे का बरसो पुराना जमीं रो रहा था
सायद वोह बुढा हो गया था ..........................
 और उस बूढी जमीं पर  चंद्रलोक का सपना अब भी  सो रहा था 
लगता है  पुल वो मीठापुर  वाला यही सोच रहा था  
और मन ही मन उन करकट  की दुकानों  को 
अपनी ऊंचाई का अहसास करा रहा था 
की उठो तुम भी मेरी तरह सुन्दरता और ऊँचाइयों को छु लो |

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