मेरे चहेते मित्र

Friday, August 9, 2013

क्षितिज का हुँकार

हुँकार     हो     अब,
 ना      धैर्य      धरूँ

हुए       शत्रू       तो,
 मै        बैर       करू

क्रोद्ध     को   कम  ना   होने   दो
शोलों    को   तुम   ना  सोने   दो

चिंगारी   कहीं     भी    हो     यदि
उसको    भड़का   तू     अभी यहीं

किसका   आश      तू     जोहे    है
चुप     क्यूँ     खुद   में   ही खोए है

चल जाग-जाग,   लगा आग-आग
युद्ध  की   तैयार   कर  कुंभ-प्रयाग

चल      बाढ़    बन   के    आते   है
उनको    घर   तक   से    भगाते है

मित्रता   की   न    अब   बात करो
शत्रू  हो,     उपहार लो,    मौत धरो

आकाल   सा    उनका    हाल करो
श्वासों   तक   के  लिए मुहाल करो

भूकम्प   तू    ऐसा    उत्पन्न  कर
थर्राए   वे    खुद   जीवन   से    डर

तुफानो    सा     हाँ       वार    करो 
नामों-निशाँ     तक      उजार धरो

बन    प्रलय    तू  ऐसा विध्वंश ला
ना अंश मिले,    दे मिट्टी में मिला

गर    कोई    तुझे    जो      रोकेगा
सर काट  हवन-कुण्ड में, झोके जा


जो     बागी     देश    को    ऐठें   है
सत्ता      में       जा     के    बठे    है

भारत   माँ       को          नोचे-लुटे
बरे     हर्ष     से     उनके व्यंग छूटे

चल    उनका     व्यंग    बनाते   है
आखे   फोड़       धुल     चटाते    है

शहीदों   की   जिनकों  परवाह नहीं
दिखता   कुर्सी    के     सिवा    नहीं

उठ     युवा      तू    अब   संहार कर
क्षितिज      बोले        हुँकार      कर

अब        किसकी    तुझे   प्रतीक्षा  है
महाकाल    की     भी    यही इच्छा है

मन     का      मोहन    तू  चुप है क्यूँ
आँखे खोल      देख      अपनों का लहू

हर    दिन    आगे      वो      बढ़ते  है
सरजमीं     पे      अपने     चढ़ते   है

एक     बार     तो    तू     साहस    दे
बंधन   को     तोड़    अब   तर्कष  दे

गर    तेरा     अब     इख्तियार  नहीं
और    तुझे    देश    से    प्यार   नहीं

तो    त्याग   दे   शासन   का  तू मोह
देश छोर,    पदग्रहण कर शत्रू  गिरोह

हम      तुझको     भी     दिखला   देंगे
भक्ति    क्या  है      सिखला          देंगे

देखो       बादल      भी       सोती     है
वर्षा       भी      अब     ना    होती   है

फिर      भी       नदियों     में   बाढ़ है
प्रकृति          प्रलय        प्रहार        है

हर     कण     क्रोद्धित   अब  गुस्सा है
फिर     भी     तू    क्यूँ     चुप    सा  है

ए      बादल       तू    अब  गरज-गरज
वर्षा   बन   तू      अब        बरस-बरस

सुनामी       सा        प्रलय          बरपा
क्रोद्ध          अपना        उनको     दिखा

बन        सिंह       समान      दहाड़ कर
अब       शत्रू       का       संहार      कर

कद       बढ़ा       ले   तू    पहाड़     कर
शक्ति     की      अपनी     विस्तार  कर

कुचल     दे       उन         कीड़ों      को
ललकारे     जो      अपने   वीरों     को

क्षितिज      चिल्लाए     पुकार      कर
हुँकार      कर               हुँकार       कर




Saturday, May 18, 2013

गर्मी के मौसम में

गर्मी के मौसम में 
बिजली गई रोशन में 

पसीने की बौछार हुई 
घर में अंधकार  हुई 

दिया  सलाई धुंध लो 
इन्वर्टर का स्विच ऑन करो 

इन्वर्टर  जब फेल हो जाए 
छत पर सारे रेल हो जाए 

 ठंडी हवाओं का मेल हो जाए  
चटाई बिछा अब कोई खेल हो जाए 

अन्ताराक्षरी का प्रोग्राम हो 
गाना सरे आम हो  

जो जीता वही  सिकंदर होगा 
बाकी बैठा बन्दर होगा 

जब हवाए बंद हो जायेंगी 
मच्छरों से सब तंग हो जायेंगे 

तालियों की गर-गराहत होगी 
मच्छरों की शामत होगी 

फिर भी बाज न आएगा 
खून चूस भाग जाएगा 

रक्त दान जब कर देना 
आनबान साब धर देना 

जहाँ भी उसे तुम देखो 
थप्पर से उसको ठोको 

फिर भी जो बच  निकले 
खुद ही तू खुजली करले 

और कोई उपाए नहीं 
बिजली अभी तक आई नहीं 

अब कितना बखान करू 
इस सरकार का गुणगान करू 

बहुत हुआ अब लेट लो 
सब समेत घर में चलो । 





Wednesday, March 27, 2013

सुखी होली



सुबह सुबह जब जागा मै 
फटी कमीज में आधा मै 

मुंह पर चुपरा इन्द्रधनुष 
फिर भी लोगों मै  था खुश 

सोचा जाके साफ करूँ 
नल के पास वॉश  करूँ 

ठंडी ठंडी जल को  ले 
अपने चेहरे पर उड़ेले 

मन ही मन मुस्काने लगा 
दर्पण के निकट जाने लगा 

तभी मुझे मलाल हुआ 
मेरा चेहरा तो लाल हुआ 

पानी में भी घोटाला था 
खौन्ग्रेस  का मन काला था 

ज्यों का त्यों मै सर लिया 
ब्रश पकर रगड़ लिया 

पेस्ट नीम हरी सी थी 
उसमें रंग मिली सी थी 

दांतों से धोकेबाजी हुई 
अगस्ता से  सौदेबाजी हुई 

तभी किचेन से महक उठी 
मालपुआ और फुल्कें छोटी 

मुंह की प्यास बढ़ने लगी 
जीभ उधर को  चढ़ने लगी

तभी गैस ने धोखा  दिया
12  के बदले सिर्फ 9  दिया

इंडक्शन ने जान तो बचाली
पर महंगाई ने हलाल कर डाली

इसे देख प्रियसी मैंने पानी बचाली
और इस बार सुखी होली ही मनाली










Saturday, March 23, 2013

बिहार दिवस


खुश हूँ मै तो आज बस
है किसी का जन्म दिवस 

सारा  शहर सजा रखा है 
दिल को अपने खिला  रखा है 

मेलों सा माहौल है 
 जाने कितने लगे स्टाल है 

हर पसंद का टेस्ट है 
कोई लेता नहीं आज रेस्ट है 

सभी घूम के आयेंगे 
बिहार दिवस मनाएंगे 

मंत्री जी का भाषण होगा 
लेज़र शो प्रदर्शन होगा 

राज्य गीत को गायेंगे 
बिहार गौरव गान सुनायेंगे  

व्यंजन का मेला  सा होगा 
खाने वालों का रेला सा होगा 

एक  छोटा नाटक बनायेंगे 
उसमें औरत को दिखायेंगे 

राजन साजन मिश्र इति 
शास्तरीय संगीत सुनायेंगे 

मन ना भरे जो सुन्ने से पहले 
कत्थक नृत्य तुम देख लेना 

आज के दिन तुम मेरे भाई 
उदास न होना यही बस 

आओ घुम कर आते है 
मानते है बिहार दिवस 

सोनू निगम का गीत होगा 
खूब डांस संगीत होगा 

मुशायेरा के प्रतिभागी  होंगे 
नाशाद औरंगाबादी होंगे 

 मुशायेरों से दिल जो  ना भरे 
तो  हास्य कवी सम्मलेन की और चलें 

हँसते हँसते पेट में बल जो आये 
रूककर थोर व्यंजन खाएं 

लिट्टी हो चोखा 
 किसने है तुमको रोका 

खूब मजे से खायेंगे 
आज बिहार दिवस मनायेगे 





Sunday, January 20, 2013

रेप का महान कुम्भ


काफी दिनों से  मौन था 
कविताओं की दुनियां से गौण था ।

अचानक हस्क्षतेप हुआ 
सुनने में आया की रेप हुआ ।

बात फ़ैल गई चारो ऒर 
सजा दिलाओ यही था शोर। 

आओ सूली चढ़ा देते है 
सरेआम उसे जला देते है ।

बनायें कुछ नया कानून 
हर जुबान पर इसी की  धुन ।

जंगल में आग सी लग गई 
गिडरों की भगदर मच गई ।

सब अपनी  जान बचाते थे 
भेड़-बयान  सुनाते थे ।

पर-संस्कृति पर प्रहार हो 
या अपने चरित्र का उद्धार हो ।

सीमाओं  को ना पार करो 
तालिबानी फरमान गाठ धरो ।

न्याय त्वरित करवाई हो 
बहस नहीं लड़ाई हो ।
                                                
तभी एक ब्रेक हुआ 
इस बार देश का रेप हुआ ।

सर काट के ले गएँ  वो 
दुश्मन देश के थे जो।

मुद्दा अब बदल गया 
हर दिल में इसका दख़ल  गया  ।

न्याय मिले, ना, क्या गम है 
देश के क्रन्तिकारी हम है ।

सारे गिडर सियार हो गएँ 
देखो कितने होशियार हो गएँ ।

विरांगनी करुण पुकार करे 
 वीर के मुख का इन्तेजार करे ।

उसकी भी आखरी चाहत थी 
उनके मुख को देख पाती ।

संभव न था वापस लाना 
सो देते रहे सांत्वना ।

दुःख से वो बेहाल हुई 
घर में ही भूख हड़ताल हुई ।

सियार  काफी डर गए 
इसिलिय  उसके घर गए ।

वही  पुरानी   चाल चली 
रुपये-रोजगार पर  दाल गली ।

हर-पल रेप यहाँ होता है 
ये देश अपना एकलौता है ।

 बड़ा  पवित्र स्थान है ये 
कुम्भ की धरती महान है ये।
                                                                
भ्रदरा  का जहाँ मिलन हुआ              भ्रदरा= (भ्रष्टाचार-दरिदगी-राजनीती)
रेप का कुम्भ वहां उद्गमन हुआ ।

आओ मिलकर रेप करें 
काम तो कुछ नेक करें ।

भ्रष्टाचार की इज्जत लूट लो 
खूंखार  की इज्जत लुट लो ।

राजनीती को हम नग्न करें 
महंगाई का चिर हरन  करें ।

रेप का कुम्भ महान है 
करले तू भी स्नान हे ।













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