हर रात बिस्तर से आस लगता हूँ
कि कल सवेरा ना हो
और मैं ता उम्र या इसके बाद भी
गहरी नींद में सो जाऊं
तो फिक्र ही न होगी मेरे आने वाले वर्तमान कि
और नाही चिंता सताती मेरी शेष बचे अभिमान की
पर यह संभव तो है नहीं
इसलिए सुबह होने से पहले नींद खुल जाती है
और रोजगार की बात याद दिलाती है
पर ये मन आलस बेबस
फिर सो जाता है और पुनः
झूठे सपनो में खो जाता है ....
जैसे गरीबों के सपने भी बहुत होतें है
थोरे हँसते है तो कुछ रोतें है
आस में साड़ी जिन्दगी जोहते हैं
और तबतक सुबह हो जाती है
बीवी उठाती है, और चिल्लाती है
की आज काम पर नहीं जाना
घर में आयेगा कैसे अनाज का दाना ,
और छोटी सी दिवार पर
लटकी घडी की बरी सी सुइयां मुझे
बार -बार याद दिलाती है
की बेटे उठ जा, नहीं तो तेरी नौकरी जाती है
क्या चाय क्या नाश्ता चलो पकरो ऑफिस का रास्ता
बॉस देते है हमको ना जाने किस किस का वास्ता
और इशारे से दिखाते है हर -बार बाहर का रास्ता
वहाँ भी सुकून की कुर्सी नहीं है
जो मैंने काम किया था क्या वो सही है?
इन्ही सब बातो से मैं जाता हूँ हार
यही है मेरा जीवन, मेरा रोजगार
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