जब भी होती हो आस पास
तुझे देखने की रहती है प्यास
नज़रें सख्त चट्टान साथ
करती है दीदार साँस दर साँस
पलकों का पीछा करते गीरे जैसे आकाश
और उस अँधेरे में ख्याल है तेरा खास
और उठे तो खोले खजाने का कपाट...
जिससे बढ़ जाती है फिर मेरी दीदार की प्यास
खज़ाना देख लालच किसे ना होता
मैं तो बस अदना इंसान हूँ छोटा
सिर्फ खुद से बेबस ख़जाना देखता हूँ
और वो खुद मेरे पास आए यही सोचता हूँ
पर सोचने से पूरी नहीं होती है आस
सिर्फ इंतजार ही है शेष मेरे पास
इंतजार भी इंतजार कर थक जाएगी
तब खुद का प्रयास ही रंग लाएगी
वही मेरी तलाश कहलाएगी
एकदम सीधी सच्ची बात कहती कविता जो मेरी अब तक पढ़ी गयी बेहतरीन कविताओं मे से एक है।
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