मेरे चहेते मित्र

Saturday, January 7, 2012

सन्नाटा

सन्नाटा क्या होता है 
सिर्फ मन का गूंगा पन
क्योंकि शोर तो सन्नाटे में  भी होता  है 
जिसमें आवाज नहीं आने की 
डर हमें सताती है 
और अगर कोई आवाज कानो तक 
पहुचे उसकी इन्तेजार में ही सहम जातें है
पर कोई भी लब्ज़  हमें सुनाई नहीं देती है 
तेज बारिश में ,सुनसान सड़क पर 
किसी के ना होने पर 
हमें सन्नाटा सा लगता है 
और भरी महफ़िल में 
किसी पहचान के बिना  हम  
सन्नाटा महसूस करते है 
सर्द हवाओं में भी हम 
सूरज के छुपने पर 
सन्नाटा सा पातें है 
और कड़ी  धुप में 
जलता बदन सन्नाटा महसूस करता है 
मै कवी हूँ और अर्थ से परे लिखना मेरी आदत है 
इसलिए सन्नाटे को शोर का 
रिश्तेदार जनता हूँ 
जो की शोर से कहीं ज्यादा 
प्रभावशाली है 
शोर तो सिर्फ बहार से विचलित करता है 
पर ये सन्नाटा उंदर अन्तः मन को भी झकझोर देता है 
और मै इसी सन्नाटे को 
अपना दोस्त बना चूका हूँ 
जो की मेरे अन्तः मन को रोज  झकझोरता है 
और रोज मै डरा डरा सा खुद को पता हूँ 



Friday, January 6, 2012

अल्फाज़ मेरे

मै बहुत ही नीच किस्म का कवी हूँ |
कभी भी अच्छे स्वर उचारित अथवा प्रकाशित करने की छमता नहीं है मुझमें ,
हमेसा ओछी शब्दों के पीछे भागता रहा हूँ |
जहाँ भी जाता हूँ ये शब्द मेरे साथ रहें  है, 
और सहारा के नाम पे इसने मेरा शोषण किया है| 
हर बार सोचता हूँ मेरे शब्दों में वो जादू क्यों नहीं है,
 जो दुसरे सुनकर मेरी ओर खिचे चले आते न  हैं |
क्यों मेरा एक अलग अंदाज  नहीं है,
 जो मेरे आलावा सभी के पास है| 
कोई कन्नड़ जनता है तो कोई बंगाली ,
पर अपने जुबान की पेटी तो है बिलकुल खली| 
मैं अपनी भाषा तक  भी नहीं जनता हूँ,
और शैली कहाँ से लाऊं मैं ,
मुझे क्या पता कौन सी बात किसको बुरी लगे गी 
मैंने तो सिर्फ बोलना ही सिखा है 
वो भी इसी समाज से जो ना जाने कैसे इतनी अच्छी बोल लेती है |
भीड़ में कोई मेरी क्यों सुनता नही है 
और अकेले मै किस्से बातें करूँ |
में तो भीड़ में भी तनहा सा हूँ 
और अकेले में ना जाने किस महफ़िल से बाते करता हूँ |
ये मेरे अल्फाज़ को भी नहीं पता है 
की मेरा अल्फाज़ क्या है |
 




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