हाँ शेर तो थे कई
पर इतना भी गुरुर क्यूँ,?
पर इतना भी गुरुर क्यूँ,?
सीखे थे सब पथिक
यहीं से चलना दूर क्यूँ?
यहीं से चलना दूर क्यूँ?
जो ज्ञान कहीं नहीं मिली
यहीं मिला हुजुर क्यूँ?
यहीं मिला हुजुर क्यूँ?
हुकुमत-ऐ-हिंदुस्तान
तेरे रजा-इन्द्र यहीं के थे|
तेरे रजा-इन्द्र यहीं के थे|
जय घोष जय प्रकाश के
फूल भी यहीं खिले |
फूल भी यहीं खिले |
वो नीली गायों के लिए
दौड़ कर यहीं चलें,
दौड़ कर यहीं चलें,
स्मरण कथन की बात
वो सर्व प्रथम यहीं चलें|
वो सर्व प्रथम यहीं चलें|
आन्दोलनों को ले चले,
क्रांति की लहू भरे|
क्रांति की लहू भरे|
जग देख ना सका
किसे किरकिरी सी लगी,
किसे किरकिरी सी लगी,
ना जाने किस दौर में
इसे किसकी नज़र लगी|
इसे किसकी नज़र लगी|
और धुल सी आंधियां
भी तेज़ चलने लगी ,
उस पर न मिला कोई साथ ,
सब दूर होने लगें
सब दूर होने लगें
मन पर बसी थी ललक
पर ख़त्म थी इसकी चमक|
पर ख़त्म थी इसकी चमक|
और अँधेरी यह राह थी
कईयों की इसमें आह थी
कईयों की इसमें आह थी
काल राह में जो भी पथिक
चलें सर्वस्व जान कर,
चलें सर्वस्व जान कर,
कुछ तो सहम गएँ
और कुछ क्रोध में अहम् गएँ,
और कुछ क्रोध में अहम् गएँ,
रक्त अपना बहता देख
वो लहू के प्यासे बन गएँ |
वो लहू के प्यासे बन गएँ |
शुरू हो गयी देखो
यहाँ भी रण की होलियाँ,
यहाँ भी रण की होलियाँ,
और दूर से देख कर
वो देने लगे हमें गलियां |
वो देने लगे हमें गलियां |
पहले तो बाग़ फूल से था भरा ,
देखो बन गयी है रक्त की घरा
देखो बन गयी है रक्त की घरा
ये तपस्वी जन्म भूमि
तू देख चुप है क्यूँ पड़ा
तू देख चुप है क्यूँ पड़ा
युहीं पहर-दर-पहर
साल भी बीतता गया
साल भी बीतता गया
जो रक्त का बाग़ था
वो किचर में बदल गया
वो किचर में बदल गया
और गंध दे रही थी
यहाँ की मिटटी बुरी
यहाँ की मिटटी बुरी
उस पर उपज परे
यहाँ नक्सली बरी
यहाँ नक्सली बरी
जो भी उम्मीद थी
वो सारे अब डर गयी
वो सारे अब डर गयी
पर जो बोलना चाहा
उसके घर बम पर गयी
उसके घर बम पर गयी
बेटियों की हयात
खुले में लुटने लगें
खुले में लुटने लगें
माँ बिधवा देख ,
अश्रु धार बहने लगे
अश्रु धार बहने लगे
निः शब्द मुख खोल कर
जब बोलना जो चाहा
जब बोलना जो चाहा
तब ज्ञात हमें ये हुआ
की शिक्षा तो विरल हुई
की शिक्षा तो विरल हुई
जो सबने सिखा उसमें
हमने बरी देरी की
हमने बरी देरी की
बस एक ही रास्ता था
हमें मजदूरी की
हमें मजदूरी की
राज्य जैसे सारे
इसी के फ़िराक में परे
इसी के फ़िराक में परे
अपने कारखानों में
बिहारी मजदुर ही भरें
बिहारी मजदुर ही भरें
जो आग जल परी थी
पेट की वो ना बुझी
पेट की वो ना बुझी
मजदूरी के आलावा
कोई दूसरा रास्ता ना सूझी
कोई दूसरा रास्ता ना सूझी
निकल परे अपने
जिगर के टुकड़े घर छोड़ कर
जिगर के टुकड़े घर छोड़ कर
ये देव देखना इन्हें
करता हूँ प्रणाम हाथ जोड़कर
करता हूँ प्रणाम हाथ जोड़कर
बलिष्ठ था ये बदन
पर अवशाद ग्रस्त था ये मन
पर अवशाद ग्रस्त था ये मन
क्या कमा पाउँगा धन
बसर होगा कैसे ये जीवन
बसर होगा कैसे ये जीवन
दो लाल पूत भी तो हैं
उन्हें दूंगा शिक्षा गहन
उन्हें दूंगा शिक्षा गहन
ये चेतना लिए
निकल परा ये बिहारी मन
निकल परा ये बिहारी मन
रेल की धार चलें
बिहारी हजार चलें
बिहारी हजार चलें
ढूंढने रोजगार चलें ,
घर से बार -बार चलें
घर से बार -बार चलें
नयी थी वेश
नया प्रदेश
नया नया था समावेश
नया प्रदेश
नया नया था समावेश
दुत्कारियां ,
गालियाँ,
मजाक की वो तालिया
गालियाँ,
मजाक की वो तालिया
कर के सहन
रहन सहन
हम सब ने अपनालिया
रहन सहन
हम सब ने अपनालिया
वे देखते थे आज कल
हम थे हमेशा अटल
हम थे हमेशा अटल
धन खूब बटोरा लुट के
बदनामी हुई थी प्रबल
बदनामी हुई थी प्रबल
इसी से लहू बबल गया
हर बिहारी संभल गया
हर बिहारी संभल गया
अब फ़िक्र थी मान की
स्मिता और अभिमान की
स्मिता और अभिमान की
सवालों की बौछाड़ हुई
आखिर हमारी क्यूँ हार हुई
आखिर हमारी क्यूँ हार हुई
खुद से सवाल कर उठे ,
हम बिहारी क्यूँ डर उठे
हम बिहारी क्यूँ डर उठे
नव जागरण की बात हो
अब दिन हो न काली रात हो
अब दिन हो न काली रात हो
नव चेतना हम में जगा
दुराचारियों को अब भगा
दुराचारियों को अब भगा
सह लिया इस मार को
अब हटाओ इस सरकार को
अब हटाओ इस सरकार को
जिसे कुछ ना ख्याल है
अपने प्रदेश का क्या हाल है
अपने प्रदेश का क्या हाल है
जनता का यह रोष था
सरकार को न होश था
सरकार को न होश था
बस स्वयं में ही थे मग्न
जन को लूटे सब मंत्रीगण
जन को लूटे सब मंत्रीगण
यह देख आग सी लगी
नेता छवि दाग सी लगी
नेता छवि दाग सी लगी
युवा मंच का था आवाहन
जन शक्तियों का कर गहन
जन शक्तियों का कर गहन
कर ख़त्म दबंग भ्रष्टाचार
ला अब यहाँ नयी सरकार
ला अब यहाँ नयी सरकार
नव क्रांति की बात हो
सुख शांति की बात हो
सुख शांति की बात हो
जिस पर सभी की आस हो
अब हमारा भी विकाश हो |
अब हमारा भी विकाश हो |