मेरे चहेते मित्र

Sunday, April 19, 2015

खोद लूँ कब्र या गुलिस्तां उगाऊँ


दो टुकड़े इज़्ज़त के कैसे लाऊँ


तिनका कहाँ से ढूँढू 


कैसे आशियाना बनाऊं 


इस खूंखार जंगल में 


दो पल चैन कहाँ पाऊँ 


समुद्र के बीच हूँ 


फिर भी प्यासा हूँ 


कैसे बारीश बुलाऊँ 


अपनी प्यास बुझाऊँ 


धुप से बदन जल पड़ा है 


कहाँ पेड़ लगाऊँ 


कब छाह मैं पाऊँ 


दो गज़ ज़मीं खोद लूँ कब्र की 


या उस ज़मीं पर गुलिस्तां उगाऊँ
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