काफी दिनों से मौन था
कविताओं की दुनियां से गौण था ।
अचानक हस्क्षतेप हुआ
सुनने में आया की रेप हुआ ।
बात फ़ैल गई चारो ऒर
सजा दिलाओ यही था शोर।
आओ सूली चढ़ा देते है
सरेआम उसे जला देते है ।
बनायें कुछ नया कानून
हर जुबान पर इसी की धुन ।
जंगल में आग सी लग गई
गिडरों की भगदर मच गई ।
सब अपनी जान बचाते थे
भेड़-बयान सुनाते थे ।
पर-संस्कृति पर प्रहार हो
या अपने चरित्र का उद्धार हो ।
सीमाओं को ना पार करो
तालिबानी फरमान गाठ धरो ।
न्याय त्वरित करवाई हो
बहस नहीं लड़ाई हो ।
तभी एक ब्रेक हुआ
इस बार देश का रेप हुआ ।
सर काट के ले गएँ वो
दुश्मन देश के थे जो।
मुद्दा अब बदल गया
हर दिल में इसका दख़ल गया ।
न्याय मिले, ना, क्या गम है
देश के क्रन्तिकारी हम है ।
सारे गिडर सियार हो गएँ
देखो कितने होशियार हो गएँ ।
विरांगनी करुण पुकार करे
वीर के मुख का इन्तेजार करे ।
उसकी भी आखरी चाहत थी
उनके मुख को देख पाती ।
संभव न था वापस लाना
सो देते रहे सांत्वना ।
दुःख से वो बेहाल हुई
घर में ही भूख हड़ताल हुई ।
सियार काफी डर गए
इसिलिय उसके घर गए ।
वही पुरानी चाल चली
रुपये-रोजगार पर दाल गली ।
हर-पल रेप यहाँ होता है
ये देश अपना एकलौता है ।
बड़ा पवित्र स्थान है ये
कुम्भ की धरती महान है ये।
भ्रदरा का जहाँ मिलन हुआ भ्रदरा= (भ्रष्टाचार-दरिदगी-राजनीती)
रेप का कुम्भ वहां उद्गमन हुआ ।
आओ मिलकर रेप करें
काम तो कुछ नेक करें ।
भ्रष्टाचार की इज्जत लूट लो
खूंखार की इज्जत लुट लो ।
राजनीती को हम नग्न करें
महंगाई का चिर हरन करें ।
रेप का कुम्भ महान है
करले तू भी स्नान हे ।