मेरे शब्द कही खो गए है
शयद जुबां में हि सो गए है।
ना जाने क्यूं कविता नहीं बनती
मन में क्यूं इच्छा नहीं जगती ।
की लिखू क्या आज मै
बने कोई आवाज लय ।
की कोई कल्पना कर पाता नहीं
नई कोई रचना आता नहीं ।
कविताये और भी पुराने है मेरे
पर वो भी आधे उकेरे से है रे ।
मुझे कतई ग्लानि नहीं की
मेरी सामर्थ कम हो गयी ।
या मेरी रचना शक्ति
यद्पी भंग हो गयी ।
परन्तु हैरान अवश्य हूं
स्वयं से कुंठित विवश हूँ ।
की दिया क्यूं ये शक्ति
जब खोनी ही थी ।
इंशान को कवि की
जब ये होनी ही थी ।
फिर भी जोर लगाता हूँ
अपनी कोशिश को आजमाता हूं ।
शायद कुछ बात बने
मेरी सोच हि कविता का रूप ले ।।